Sunday, September 6, 2009

मुलाकात:वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल से

(मेरे द्वारा २८-०७-०९ को लिया गया साक्षात्कार )
प्रश्नः आप लेखन से कैसे जुड़े ?
श्री शुक्लः ये बताना मुश्किल है। लिखने के बाद कोशिश की और इतने लंबे समय तक लिखने के बाद अब थोड़ा सा लगता है कि शायद मैं लेखन से जुड़ा हूं। कैसे को ढूंढना काफी मुश्किल है, लेकिन मैं कह सकता हूं कि उस समय का पारिवारिक वातावरण और घर में आती माधुरी, चांद, सरस्वती इत्यादी पत्रिकाओं का प्रभाव रहा जिसने मुझे लेखन से जुड़ने में मदद किया हो। उस समय जासूसी किताबें पढ़ना अश्लील माना जाता था और मैं अच्छी किताबें पढ़ने की कोशिश भर करता रहा।
प्रश्नः ऐसी कोई घटना या प्रभाव जिसने आप को लिखने को प्रेरित किया हो ?
श्री शुक्लः ऐसी कोई घटना नहीं होती जो लिखने को प्रेरित करे, बल्कि जीवन जीने में घटनाओं का वातावरण बनता है, जो हमारे अनुभव का कारण होता है और संवेदनाओं को कुरेदता है। समस्त प्राप्त हुए अनुभव के घटाटोप में लिखने से कोई दरार सी पड़ती दिखाई देती हो, जिसे उजाला दिखाई देता हो, तो लिखना अपने आप में फैले घटाटोप को हटाने का कर्म जैसा बनने लगता है।
प्रश्नः आपने ने लेखन की शुरूआत कविता से की या गद्य से ?
श्री शुक्लः कविता से। शुरू-शुरू में कविता लिखने से ऐसी संपूर्णता का बोध होता है जिसे थोड़े में समेट लिया गया हो। कविता लिखना संभवतः शुरूआत में जल्दबाजी जैसी है। ये जल्दबाजी समेटने की जल्दबाजी होती है, परंतु बाद में कविता लिखना बहुत कठिन लगने लगता है। और मैं ये मानता हूं कि कविता लिखने की कठिनाई बढ़ने के बाद गद्य का लिखना बहुत स्वभाविक तरीके से शुरू हो जाता है, लेकिन तब भी मैं बार-बार कहता हूं कि गद्य के रास्ते में बार-बार कविता मुझे मिल ही जाती है। यह लेखन की ऐसी शुरूआत होती है जो अपने घर की छांव में शुरू होकर जीवन के लंबे उजाड़ में प्रवेश करती है। दरअसल, यह उबड़-खाबड़ लंबा उजाड़ गद्य का होता है, जो जिन्दगी की तरह होता है और कविता इस उजाड़ में एक्का-दुक्का पेड़ की छाया की तरह होती है, जिसके नीचे ठहरकर, सांस लेकर फिर आगे बढ़ते हैं।
प्रश्नः भारतीय साहित्य और छत्तीसगढ़ी साहित्य आज किस दिशा में जा रहा है ?
श्री शुक्लः भारतीय साहित्य आज विष्व स्तर पर है। छत्तीसगढ़ी की बात करें तो इसमें मेरी जानकारी थोड़ी है, अभी यह केवल होने- होने की स्थिति में है।
प्रश्नः आपके द्वारा लिखे गए उपन्यास ’’नौकर की कमीज’’ को काफी ख्याति मिली। क्या आप मानते हैं कि यह आपकी सबसे अच्छी कृति है ?
श्री शुक्लः मेरे मानने न मानने का कोई मतलब नहीं है। वैसे ’’खिलेगा तो देखेंगे’’ उपन्यास सबसे कम चर्चित रहा लेकिन यह मुझे अपने करीब अधिक लगता है।
प्रश्नः क्या आपको लगता है कि आज की युवा पीढ़ी साहित्य से दूर होती जा रही ?
श्री शुक्लः हां। अपने युवपन को याद कर जब मैं सोचता हूं तब लगता है कि साहित्य जो शुुरू से उपेक्षित रहा, अब और अधिक उपेक्षित हो गया है। दरअसल, जो साहित्य होता है वह बहुत ही गिने-चुने लोगों के बीच सिमटा हुआ है, शायद हाशिए में। साहित्य सबसे ज्यादा हाशिए में है, सामाजिक तौर पर भी राजनीतिक तौर भी। उत्कृष्टता को राजनीति कभी नहीं बचाती, क्योंकि थोडे़ से लोगों की होती है और जो उत्कृष्ट नहीं है, बल्कि खराब है वह जाने-अनजाने बहुमत के साथ होता है। हमारा प्रजातंत्र जिस तरह का है, उसमें बहुमत की अच्छाई थोड़ी है और राजनीति में बहुमत की बुराई को सत्ता में आने का हथियार बनाया गया है।
प्रश्नः वर्तमान में क्या आप कोई उपन्यास आदि लिख रहे हैं ?
श्री शुक्लः फिलहाल मैं किशोरों के लिए एक उपन्यास लिख रहा हूं, जो पूरा होने की स्थिति में है। इसके अलावा कविता संग्रह की पांडुलिपियों को भी तैयार कर रहा हूं। दो-तीन उपन्यास अधूरे पड़े हैं, मालूम नहीं पूरे होंगे कि नहीं।
प्रश्नः एक रचना के पूरे होने पर कैसा महसूस होता है ?
श्री शुक्लः रचना कभी पूरी नहीं होती। एक स्थिति में आकर रचनाकार को लगता है कि हो गया। रचना कि ऐसी स्थिति होती है जहां एक स्थिति के बाद वह ठहर जाती है, खुद ठहरी हुई होती है, और उसका लिखना ठहर जाता है, शायद ऐसी ही स्थिति रचना के समाप्त होने पर होती हो। जब दूसरी रचना शुरू होती है, यद्यपि ठहराव के बाद अलग हो जाती है, हालांकि, उसे पहले लिखे हुए का आगे बढ़ना ही मानना चाहिए। इसलिए, एक कविता संग्रह को एक कविता की तरह ही पढ़ा जाना चाहिए और लेखक के समग्र को, एक रचना ही मानना चाहिए।
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Saturday, September 5, 2009

स्टांप पेपर पर बिक रही हैं औरतें !

सरकार की ओर से देश में अभूतपूर्व विकास होने का दावा किया जा रहा है तो दूसरी तरफ बुंदेलखंड की स्थिति दिनोंदिन भयावह होती जा रही है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि इस इलाके में औरतों की खरीद-फरोख्त भी होने लगी है। जिस्म के सौदागर बकायदे स्टांप पेपर पर इनका सौदा कर रहे हैं। एक निजी चैनल की मानें तो इस इलाके में तमाम ऎसे दलाल सक्रिय हैं, जो महिलाओं की खरीद-फरोख्त का धंधा कर रहे हैं। मालूम हो कि बुंदेलखंड इलाका कई वर्षो से सूखे की चपेट में है। इस बार स्थिति भयावह हो गई है। निजी चैनल की मानें तो सविता (परिवर्तित नाम) नामक युवती को किसी और ने नहीं बल्कि उसके पति ने ही बेच दिया। कीमत लगाई आठ हजार रूपए। सौदा पक्का करने और इस सौदे को कानूनी दर्जा दिलाने के लिए वो बाकायदा खरीदार के साथ कोर्ट पहुंचा। स्टांप पेपर पर लिखापढी हो गई, लेकिन मौका मिलते ही सविता वहां से भाग निकली और अब पुलिस की अभिरक्षा में है। सविता कहती है उसने हमें बेच दिया है। पुलिस अधिकारी आरके सिंह ने बताया कि एक आदमी गुलाब इस महिला को लेकर शादी के लिए आया था। इसके पति ने इसको गुलाब को बेच दिया।
सविता बुंदेलखंड की उन हजारों औरतों में से एक है जिनका सौदा खुद अपनों ने ही कर डाला। यह तो एक मामला है, जो पुलिस और मीडिया तक पहुंचा है। गुपचुप तरीके से यह धंधा जोरों पर चल रहा है। इसे पुलिस भी स्वीकार करती है। एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि इस इलाके में 10 से 12 हजार में यह कारोबार च ल रहा है। औरतों का सौदा करने वालों ने इसे नाम दिया है विवाह अनुबंध। शादी के ऎसे ही एक एग्रीमेंट के मुताबिक पहले से ही शादीशुदा कुंती (परिवर्तित नाम) की हरिप्रसाद नाम के शख्स से दोबारा शादी हो रही है। कुंती की उम्र महज 23 साल है जबकि हरिप्रसाद लगभग उसकी दुगनी उम्र 40 साल का है। कुंती के दस्तखत को देखें तो ये भी साफ हो जाएगा उससे एक अक्षर भी सही से नहीं लिखा गया। वकील कालीचरण बताते हैं कि वो दस रूपये के स्टांप पर एक कंप्रोमाइज लिख दिया जाता है। ये भी जरूरी नहीं कि जिसने एक बार औरत खरीदी, वो उम्रभर उसे अपने साथ रखे। कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के नेवाडी थाने की पुलिस ने ऎसी ही तीन औरतों को बचाया था। पुलिस ने औरतों की ओर से बताए गए चार दलालों को भी धर दबोचा था।

Friday, September 4, 2009

ऐसे भी मिलती है जॉब


क्या आप बेरोजगार हैं? जगह-जगह बायोडाटा बांटते-बांटते थक गए हैं। आश्सवासनों के साए मे चल रही नौकरी की तलाश अब मायूसी में बदलने लगी है। तो एलेक्स से सीख लीजिए। हम वह दोहराने को नहीं कह रहे जो 23 वर्षीए एलेक्स कियर्न्स ने किया। बल्कि कुछ ऐसा करने को कह रहे हैं जिससे लोगों का ध्यान आप पर जाए। क्योंकि ऐसे भी मिलती है नौकरी। लंबे समय से जॉब की तलाश करते-करते एलेक्स थक गया था। वह स्वानसी यूनिवर्सिटी से फ्रेंच और इटालियन भाषा में स्नातक था। उसने एक प्रतियोगिता में ट्रेफल्गर स्क्वॉयर के एक हिस्से पर एक घंटे का वक्त बिताने का कांटेस्ट जीता था। अधिकतर लोग इस समय का इस्तेमाल किसी इवेंट के प्रमोशन के लिए करते हैं। लेकिन नौकरी की आस में बैठे एलेक्स को जब सारे दरवाजे बंद दिखने लगे तो उसने यहां अपनी ‘कार्यक्षमताओं’ का विशाल प्रदर्शन कर डाला। एलेक्स ने ट्रेफल्गर स्क्वॉयर पर अपने बायोडाटा का एक बड़ा पोस्टर बनाकर टांग दिया। इस पर उसने लिखा था ‘सेव ए ग्रेजुएट, गिब मी ए जॉब।’ आश्चर्यजनक रूप से उसका यह टोटका काम कर गया। एक अंतरराष्ट्रीय बिजनेस डेवलेपमेंट ग्रुप ने उससे संपर्क किया। एक टेलीफोन साक्षात्कार के बाद उसे अंतिम 16 के रूप में कंपनी में बुलाया गया। जहां वह जॉब पाने वाले तीन भाग्यशालियों में से एक था। अब एलेक्स कंपनी के लंदन कार्यालय में सेल्स एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रहा है। उसका काम ब्रिटेन और अन्य देशों की कंपनियों को परामर्श उपलब्ध कराना है। इसके बाद उसे एक एड कंपनी ने भी जॉब ऑफर की। दक्षिण पश्चिम लंदन के किंगस्टन में रहने वाले केयर्न्स के मुताबिक, ‘यह खुद को बेचने का शानदार मौका था और मैंने इसे गंवाया नहीं।’

Thursday, September 3, 2009

हादसों में खोये कई प्रतिभाशाली नेता

भारतीय राजनीति के इतिहास पर अगर नजर डालें तो संजय गांधी, राजेश पायलट, माधव राव सिंधिया, जी एम सी बालयोगी, आ॓ पी जिंदल, साहिब सिंह वर्मा, सुरेन्द्र सिंह जैसे कई प्रतिभाशाली राजनेता हादसों के चलते असमय काल के गाल में समा गए। इसी कड़ी में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, ललित नारायण मिश्र, दीन दयाल उपाध्याय का नाम भी आता है जिनकी आतंकवादी हिंसा या रहस्यमय स्थिति में मौत हुई। दुर्घटना का शिकार होने वाले नेताओं में महत्वपूर्ण नाम पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र एवं कांग्रेस नेता संजय गांधी का है जिनकी 29 वर्ष पहले दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर ग्लाइडर दुर्घटना में मौत हो गई थी। इसी कड़ी में कांग्रेस के प्रतिभाशाली नेता राजेश पायलट आते है जिनकी 11 जून 2000 को जयपुर के पास सड़क हादसे में मौत हो गई थी। पेशे से पायलट राजेश ने अपने मित्र राजीव गांधी की प्रेरणा से राजनीति में कदम रखा और राजस्थान के दौसा लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। पालयट एक महत्वपूर्ण गुर्जर नेता के रूप में उभर कर सामने आए थे। उनके नरसिंह राव सरकार में गृह राज्य मंत्री रहते हुए तांत्रिक चंद्रास्वामी को जेल भेजा गया था। माधव राव सिंधिया एक और महत्वपूर्ण नाम है जो असमय दुर्घटना का शिकार हुए। सिंधिया ने अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत 1971 में की थी जब उन्होंने जनसंघ के सहयोग से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गुना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मेें जीत दर्ज की थी। बहरहाल, 1997 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और 1984 में उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से पराजित किया। सिंधिया ने विभिन्न सरकारों में रेल मंत्री, नागर विमानन मंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री का दायित्व संभाला। लेकिन 30 सितंबर 2001 को विमान दुर्घटना में उनकी असमय मौत हो गई। तेदेपा नेता जी एम सी बालयोगी भी असमय दुर्घटना का शिकार हुए जब तीन मार्च 2002 को आंध प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के कैकालूर इलाके में उनका हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। बालयोगी सबसे पहले 10वीं लोकसभा में तेदेपा के टिकट पर चुन कर आए। उन्हें 12वीं और 13वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। उघोगपति तथा राजनेता आ॓ पी जिंदल भी दुर्घटना का शिकार होने से असमय भारतीय राजनीति के पटल से ओझल हो गए। जिंदल आर्गेनाइजेशन को उघोग जगत की बुलंदियों पर पहुंचाने वाले आ॓ पी जिंदल हरियाणा के हिसार क्षेत्र से तीन बार विधानसभा के लिए चुने गए और उन्होंने प्रदेश के उुर्जा मंत्री का दायित्व भी संभाला। 31 मार्च 2005 को हेलीकाप्टर दुर्घटना में उनकी असमय मौत हो गई। भाजपा के प्रतिभावान नेता साहिब सिंह वर्मा का नाम भी इसी कड़ी में आता है। वर्ष 1996 से 1998 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले वर्मा 1999 से 2004 तक लोकसभा के सदस्य और केन्द्रीय मंत्री भी रहे। भाजपा के उपाध्यक्ष पद का दायित्व संभालने वाले साहिब सिंह वर्मा की 30 जून 2007 को अलवर॥दिल्ली राजमार्ग पर सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। इसी कड़ी में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, ललित नारायण मिश्रा, दीन दयाल उपाध्याय का नाम भी आता है जिनकी आतंकवादी हिंसा या रहस्यमय परिस्थिति में मौत हुई। 31 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की अपने ही सुरक्षाकर्मियों ने हत्या कर दी थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी आतंकवादी हमले के शिकार हुए जब श्रीपेरम्बदूर में चुनावी सभा के दौरान लिट्टे आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी। हालांकि उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल, केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और शैलजा उस समय बाल..बाल बच गए थे जब 2004 में गुजरात में खाणवेल के पास उन्हें ले जा रहे हेलीकाप्टर का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था।