Saturday, November 21, 2009

सच्चिदानंद जोशी, कुलपति पत्रकारिता विवि

रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ का पहला व देश का दूसरा पत्रकारिता विश्वविद्यालय है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के संस्थापक कुलसचिव रहे सच्चिदानंद जोशी कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि के कुलपति हैं। विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में उन्होंने 17 मार्च 2005 को अपना कार्यभार ग्रहण किया था। वे इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में लगातार प्रयासरत हैं। उनसे यह बातचीत पत्रकार संजय दुबे द्वारा 13-10-09 को की गई थी।

पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में आप अपनी प्रमुख उपलब्धि क्या मानते हैं ?
जब यह विश्वविद्यालय शुरू हुआ था तब शून्य स्थिति में था और आज यहां विभिन्न पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। आवश्यक अधोसंरचना का विकास, अध्यापकों और स्टॉफ की नियुक्ति, विश्वविद्यालय परिसर के प्रथम चरण के निर्माण को पूरा करना और आवश्यक सुविधाओं का विकास अगर उपलब्धि है तो शायद यही मेरी उपलब्धि होगी।

वर्तमान में इस विश्वविद्यालय द्वारा कौन-कौन से पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं ?
अभी चार स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम यहां संचालित हो रहे हैं। इनमें मास्टर ऑफ जर्नेलिज्म, मास्टर ऑफ एडवरटाइजिंग एंड पब्लिक रिलेशनस, एम. एससी. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन शामिल हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के 8 महाविद्यालयों में बैचलर ऑफ जर्नेलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन का तीन वर्षीय पाठ्यक्रम भी शुरू किया गया है। इस पाठ्यक्रम के तीन साल पूरा होने से एक बैच बाहर आ गया है। इस विश्वविद्यालय द्वारा कुछ पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी संचालित किए जा रहे हैं।

कोई नया पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना है ?
अगले सत्र से हमारी योजना तीन नए पाठ्यक्रमों को शुरू करने की है। इनमें मीडिया मैनेजमेन्ट पर आधारित एम.बी.ए., मास्टर आफ सोशल वर्क और शोध से संबंधित पाठ्यक्रम शामिल हैं। शोध आधारित पाठ्यक्रम में पीएच.डी. से संबंधित होगा।

विशेषज्ञता वाले पाठ्क्रमों की क्या स्थिति है ?
वर्तमान में विशेषज्ञता वाले पाठ्क्रम समय की मांग बन गए हैं। आज के दौर में पत्रकारिता पूरी तरह प्रोफेशनल रूप ले चुकी है। इस बात को मानना पड़ेगा कि पत्रकारिता विशेषज्ञतामूलक पाठ्क्रम है। जब से यह विश्विद्यालय खुला है तब से हमारा लगातार यह प्रयास रहा है इसे फुल टाईम प्रोफेसनल कोर्स के रूप में चलाए और ऐसा करने में हम सफल भी रहे हैं। अब पत्रकारिता का एक नया युग आ गया है, मीडिया में अगल-अलग विशेषज्ञ क्षेत्र हो गए हैं और विद्यार्थियों का भी उसके प्रति काफी रूझान है। आने वाला समय माईक्रो विशेषज्ञता का होगा।

इंटरनेट आधारित वेब पत्रकारिता और कागजविहीन ई-पेपर का चलन जिस तेजी से बढ़ रहा है, क्या उसे देखते हुए कोई पाठ्क्रम शुरू किया गया है ?
विश्वविद्यालय द्वारा संचालित एम. एससी. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पाठ्क्रम में इससे संबंधित कुछ कोर्स रखे गए हैं। इसके अलावा मास्टर ऑफ जर्नेलिज्म और मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन के पाठ्क्रम में भी इलेक्ट्रानिक और वेब पत्रकारिता को शामिल किया गया है। विश्वविद्यालय इससे संबंधित विशेषज्ञता वाला पाठ्क्रम शुरू करने पर भी विचार कर रहा है।

क्या विश्वविद्यालय में पाठ्क्रम के हिसाब से पर्याप्त शिक्षक हैं ?
अभी मौजूदा विद्यार्थियों के हिसाब से तो शिक्षकों की संख्या पर्याप्त है। लेकिन आने वाले समय में हम कुछ नए पाठ्क्रम शुरू करेंगे और इसके मद्देनजर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए हमने शासन से अनुमति मांगी है। जैसे नए पदों की अनुमति मिल जाती है उसके लिए भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। जिस तरह पत्रकारिता में तेजी से बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए शिक्षकों की भी एक नई पौध तैयार होनी चाहिए। मीडिया में अच्छे शिक्षक आएं, यह समय की मांग है।

यहां से निकल रहे भावी पत्रकारों का राष्ट्रीय स्तर पर क्या भविष्य है ?
अभी यह विश्वविद्यालय नया है। हमारा पहला बैच 2007 में निकला और यह गर्व की बात है कि इतने कम समय में यहां से निकले छात्र राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। इसके अलावा यहां से निकले कुछ विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में भी हैं। इस विश्वविद्यालय की एक छात्रा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी में फेकल्टी प्रोफेसर है। यहां के विद्यार्थियों ने यूजीसी नेट की परीक्षा भी पास की और जल्द ही वे विद्यार्थी भी पत्रकारिता संस्थानों में शिक्षक के तौर पर दिखाई देगें। दो-तीन साल की अवधि में यहां के विद्यार्थियों ने अपनी अच्छी पहचान बनाई है।

विश्वविद्यालय के नए भवन का निर्माण किस स्थिति में है, इसकी निर्माण लागत कितनी है और कब तक नए भवन में स्थानांतरित होने की संभावना है ?
नए भवन के लिए शासन ने भाठागांव के पास काठाडीह में 62 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई है। इस पर निर्माण कार्य तीन चरणों में होगा। प्रथम चरण में करीब 7 करोड़ रूपए का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। साफाई और जल आपूर्ति का काम अभी बचा है, जो जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। ऐसी उम्मीद है है कि दिसंबर तक इसका उद्घाटन हो जाएगा और नए शिक्षण सत्र नए भवन में शुरू होगा।

यहां के कुछ विद्यार्थियों का कहना है कि इतने महंगे पाठ्क्रम होने के बाद भी उन्हें शिक्षण की पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, क्या यह सही है ?
मेरे ख्याल से ऐसी बात नहीं है। विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षण की अधिक से अधिक सुविधाएं देने का प्रयास किया जा रहा है। अगर देश के अन्य संस्थानों से तुलना करें तो यहां के पाठ्क्रम उतने महंगे नहीं हैं। हमने कम समय और सीमित संसाधनों में छात्रों को पर्याप्त सुविधाएं दिलाने की कोशिश की है। विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के लिए कम्यूटर लेब, लेग्वेज लैब, स्टूडियो आदि है। विद्यार्थियों द्वारा डाक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाई जाती है, समाचार पत्र निकाला जाता है। कुल मिलाकर पाठ्क्रम से संबंधित सभी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।

आप स्वयं रंगकर्मी, अभिनेता और निर्देशक रहे हैं, कुलपति बनने के बाद आप अपने इस शौक को किस तरह पूरा कर रहे हैं ?
मैं ये मानता हूं कि रंगकर्म से संबंधित होने के कारण मुझे यहां बहुत सी चुनौतियों से निपटने में आसानी हुई। इसका कारण है कि शौकिया रंगकर्म बहुत चुनौती भरा होता है। यहां की व्यवस्थाएं करने में, टीम भावना से काम करने में और लोगों से अपना तालमेल बनाने में मेरा अनुभव काफी काम आया। ये अलग बात है कि अब रंगकर्म पहले जैसा नहीं कर पाते लेकिन नाटक देखना और पढऩा जारी है। रंगकर्म से किसी न किसी रूप में संबंध बनाए हुए हैं। अगर व्यापक अर्थ में देखा जाए तो शेक्सपीयर का कहना एकदम ठीक है कि जिंदगी एक रंगमंच है और हम लोग अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

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