Saturday, July 10, 2010

आधे राज्य में नहीं चलता सरकार का शासन !

संजय दुबे
   मीडिया बहुत पहले से ही कहता चला आ रहा है लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है कि छत्तीसगढ़ में सरकार का आधे राज्य में शासन नहीं चलता है। सरकार अपनी नाक बचाने के लिए भले ही इस बात को स्वीकार न करे किंतु उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर वी रवीन्द्रन और एच एल गोखले ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की खिंचाई करते हुए यह टिप्पणी की। बाल अधिनियम लागू करने के मामले में सरकारी वकील द्वारा किए गए दावे पर न्यायालय ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के पचास फीसदी जिलों में सरकार है ही नहीं। देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी शासन की उन सब योजनाओं पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है, जिसे राज्य सरकार केन्द्र से करोड़ो-अरबों रूपए लेकर क्रियान्वित करने का दावा करती चली आ रही है। जाहिर सी बात अगर वास्तव में राज्य में विकास हो रहा है तो नक्सलवाद क्यों पनप रहा है? केवल पनप ही नहीं रहा है अब तो वह तेजी से फल-फूल रहा है और देश का सर्वाधिक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्य का दर्जा पा चुका है। अगर हालात यही रहे तो जल्द ही यह भी कहा जाने लगेगा कि छत्तीसगढ़ के पचास फीसदी हिस्से में सरकार जन-विश्वास खो चुकी है।
   डॉ. रमन सरकार की दूसरी पारी में जब ननकीराम कंवर गृहमंत्री बने तो उन्होंने मीडिया से कहा था कि राज्य में एक साल के भीतर नक्सलवाद का खात्मा हो जाएगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे पद छोड़ देंगे। लेकिन साल भर का वक्त कबका बीत गया और इस दरम्यान छत्तीसगढ़ में एक से एक बड़े नक्सली हमले हुए। यहां तक कि ताड़मेटला हमले के बाद केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी अपना इस्तीफा देने की पेशकश कर डाली। लेकिन हमारे राज्य के गृहमंत्री जी दुबक गए। आजकल यही हो रहा है उनके साथ, जब भी कोई बड़ा हादसा होता है श्री कंवर या तो भूमिगत हो जाते हैं या फिर मौन धारण कर लेते हैं। ये वही कंवर साहब हंै जो कुछ दिन पहले तक हर बड़े हमले के बाद अपनी प्रतिक्रिया में केवल एक ही डायलाग बोलते थे- यह नक्सलियों की कायराना हरकत है, इससे हमारे जवानों के मनोबल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। आज हालात ये हैं कि हाल ही नारायणपुर में हुए हमले की खबर मिलते ही मुख्यमंत्री ने आनन-फानन में अपने निवास पर मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाई, किंतु हमारे गृहमंत्री अपने बंगले पर मौजूद होने के बाद भी इस बैठक में एक घंटा देर से आए। इनकी वजह उन्होंने यह बताई कि वे उस दौरान पूजा कर रहे थे। जिस राज्य में कुछ देर पहले हमले में 27 जवान शहीद हो गए हों वहां के गृहमंत्री प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बुलाई बैठक में देरी होने पर यह तर्क देते हैं कि पूजा भी जरूरी है। श्री कंवर जो एक साल में नक्सल समास्या खत्म करने का दावा करते अब हालात बेकाबू होता देख कहने लगे हैं कि नक्सल समस्या का हल राज्य सरकार के बूते की बात नहीं है। जी हां ऐसा ही बयान उन्होंने मीडिया के सामने इस हमले के बाद बस्तर क्षेत्र के दौरे के दौरान दिया।
      यह तो हुई हमारे गृह मंत्री का बात अब थोड़ा नजर डालते हैं नक्सलियों की बढ़ती आमदरफ्त पर। आज ही नवभारत की लीड स्टोरी है- नक्सलियों ने राजधानी के मुहाने को घेरा। ताजा गुप्तचर सूचना के मुताबिक रायपुर जिले के मैनपुर, सिहावा, गरियाबंद, उदंती आदि क्षेत्रों में इन दिनों बड़ी संख्या में नक्सली मौजूद है और मौका मिलते ही किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं। रायपुर के पुलिस महानिरीक्षक मुकेश गुप्ता भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस इलाके में बड़ी तादात में नक्सलियों के होने की खबर है। करीब डेढ़ महीने पहले भी नक्सली इस इलाके में वन विभाग के एक भवन को विस्फोट कर उड़ा चुके हैं। नक्सलियों का राजधानी के इतने करीब पहुंचना निश्चित ही गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि नक्सलियों के शहरी नेटवर्क के बारे में तो पहले भी काफी कुछ सामने आ चुका है। दुर्ग- भिलाई में हथियारों का जखीरा बरामद किया जा चुका है। एक के बाद एक हुई कई बड़ी वारदातों से यह तथ्य तो सामने आ चुका है कि नक्सलियों का सूचना तंत्र काफी तगड़ा है। दुर्ग रेंज के आईजी आर के विज भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि नक्सलियों का सूचना तंत्र पुलिस के सूचना तंत्र से काफी तेज है। हो भी क्यों नहीं हमारे पुलिस व्यवस्था में घुन जो लगा है। जाहिर सी बात है जब सीआरपीएफ के ही कुछ लोग यह जानते हुए कि उसका निशाना हमारे ही जवान होंगे, नक्सलियों को हथियार सप्लाई कर सकते हैं तो पुलिस के कुछ लोग नक्सलियों के लिए मुखबिरी भी करते होंगे।
   ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के बाद राज्य में हालात जिस तरह बेकाबू हो रहे हैं उसने इस अभियान के भविष्य पर प्रश्रचिन्ह लगा दिया है। इस ऑपरेशन के शुरू होने के पहले पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक और एक वर्ष तक छत्तीसगढ़ के सुरक्षा सलाहाकार रहे सुपर कॉप केपीएस गिल ने भी तहलका डॉट काम को दिए एक इंटरव्यू में ऑपरेशन ग्रीन हंट की सफलता पर संदेह जताया था। उन्होंने तभी कहा था कि बस्तर के मौजूदा हालात में यह ऑपरेशन सफल होना मुश्किल है। लगता है कि हमारे डॉक्टर मुख्यमंत्री जी से छत्तीसगढ़ की नब्ज पहचाने में कुछ गलती हो रही है, तभी नक्सली मुद्दे पर उन्हें लगातार असफलता का मुंह देखना पड़ रहा है। नक्सलवाद के नाम पर केन्द्र से करोड़ो-अरबों रूपए तो मिल रहे हैं लेकिन विकास कागजी ही है।
        सरकारी फाईलों में, गांव का मौसम गुलाबी है
       मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावे किताबी हैं ।
   रायगढ़, कोरबा और जांजगीर चांपा जैसे जिलों में आए दिन निजी संयंत्रों की जन-सुनवाई के दौरान लोगों का जन आक्रोश भड़क रहा है। यहां तक कि प्रस्तावित संयंत्रों को जमीन देने के मामले में ग्रामीण मरने-मारने पर उतारू हो रहे हैं। हाल ही में रायगढ़ में एसकेएस स्टील एंड पॉवर कंपनी के प्रस्तावित प्लांट का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने संयंत्र के महाप्रबंधक सहित चार अधिकारियों को करीब आठ घंटों तक बंधक बनाए रखा। वहीं जांजगीर में एक पॉवर प्लांट का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने संयंत्र के अधिकारियों से मारपीट भी। इस सिलसिले में पुलिस ने डेढ़ सौ से ज्यादा ग्रामीणों को गिरफ्तार भी किया था। आखिर सरकार ऐसे हालात पैदा क्यों होने दे रही है। राज्य सरकार ने खरबों के एमओयू किये हैं और अब वे कंपनियां अपना संयंत्र बनाने के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी से रह रहे ग्रामीणों को बेदखल करने पर तुली हुई हैं। सरकार इस बात को क्यों भूल जा रही है कि ग्रामीणों का यही असंतोष उन क्षेत्रों में भी नक्सलवाद को जन्म दे सकता है जहां अभी नक्सलवाद नहीं है या आंशिक रूप में है।
   यह बात तो समझ में आती है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य करवाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन जो क्षेत्र अभी नक्सलियों की पहुंच से दूर हैं वहां क्यों नहीं विकास हो रहा रहा है। क्या सरकार इस बात का इंतजार कर रही है कि बाकी क्षेत्रों में भी नक्सलवाद पनपे तभी वहां विकास को प्राथमिकता दी जाएगी।
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