पत्रकार संजय दुबे द्वारा छत्तीसगढ़ के वाणिज्यिक कर आयुक्त से की 19 दिसंबर 2009 को की गई विशेष भेंटवार्ता।
मिश्र जी आपकी प्रशासनिक कार्यप्रणाली में ऐसी कौन सी बात है कि आप जहां भी रहते हैं वह समय वहां के लिए आदर्श और इतिहास बन जाता है ?
शासकीय योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन इस तरह से किया जाना कि आम आदमी व सर्वहारा वर्ग उससे जुड़ जाए। किसी भी योजना का क्रियान्वयन हम जब उसको धरातल तक पहुंचाकर करना चाहते हैं तो ये चीजें बहुत आवश्यक होती हैं। ब्रिटिश काल में प्रशासनिक अधिकारी जनता से दूरी बनाकर चलते थे, लेकिन अब प्रशासन जनता से जुड़कर कार्य करता है। जनकल्याण के लिए जरूरी है कि अधिकारी लोगों से सामंजस्य बनाकर चलें, यदि ऐसा नहीं होने पर किसी भी योजना का क्रियान्वयन शत-प्रतिशत उसकी भावना के अनुरूप हो पाना संभव नहीं है। आम नागरिकों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करके ही शासकीय नीतियों और योजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सकता है। अनावश्यक रूप से या कृत्रिम ढंग से बनाई गई दूरी का स्पष्ट प्रभाव योजनाओं की सफलता पर पड़ता है। यदि कोई अधिकारी आम लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए तत्पर रहता है तो लोगों के बीच इसका अच्छा संदेश जाता है और शासन की अच्छी छवि निर्मित होती है। यही कारण है कि अच्छा कार्य करने वाले अधिकारी को लोग याद रखते हैं।
आप छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र हैं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के सुपुत्र हैं। अपने पिता को आपने किस स्वरूप में जीवन का आदर्श बनाया ? उनकी स्मृति में राज्य में कौन-कौन से कार्य चल रहे हैं ? उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ बताएं।
मेरे पिताजी जीवन में विपरित परिस्थितियों का समना करते हुए अपने आदर्शों पर दृढ़ता से कायम रहे। आज सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि विपरित परिस्थितियों में बहुत से लोग अपने सिद्धांतों और जीवन शैली के बारे में कई बार समझौता कर लेते हैं। उन्होंने हमेशा विपरित परिस्थितियों को स्वीकार किया, उसका सामना किया और संघर्ष करते रहे लेकिन अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया। उनके व्यक्तित्व के इस पहलु को मैं अपने लिए आदर्श मानता हूं और इससे मुझे हमेशा प्रेरणा मिलती रहती है। जब भी कभी विपरित परिस्थितियां आती हैं और ऐसा लगता है कि आगे का रास्ता अंधकारमय है ऐसे में पिताजी की स्मृति एक आत्मिक बल और प्रेरणा प्रदान करती है। पिताजी जबतक जीवित रहे उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में न तो अपना नाम जुड़वाया और न ही उन्होंने इसका कोई लाभ अपने या अपने परिवार के लिए लिया। उनके स्वर्गवास होने के पश्चात् शासन ने स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को देखते हुए शासन ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करते हुए उनका नाम जोड़ा था। सरकार ने उनके नाम पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्विद्यालय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लखनलाल मिश्र शोध पीठ की स्थापना की। मेरी जानकारी में संभवत: किसी स्वतंत्रता संग्राम के नाम पर देश की यह पहली शोध पीठ है। इसमें छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले ऐसे लोग जिनको लोगों ने भुला दिया है ऐसे लोगों की जानकारी एकत्रित करना और भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में उनके योगदान को रेखांकित करना, इस शोध पीठ का उद्देश्य है। इसके अलावा रायपुर नगर निगम द्वारा एक व्यावसायिक परिसर का नामकरण भी पिताजी के नाम पर किया गया है। रायपुर जिले के तिल्दा के पास पैतृक गांव मुरा में जलसंसाधन विभाग का तालाब है उसका नामकरण भी शासन ने पिताजी के नाम पर किया है।
पिताजी दुर्ग थाने के प्रभारी थे। इसी दौरान 15 दिसंबर 1945 को तात्कालीन आईसीएस अधिकारी आर.के. पाटिल महात्मा गांधी के आह्वान पर शासकीय सेवा से इस्तीफा देकर नागपुर जा रहे थे और दुर्ग रेलवे स्टेशन में जब उनकी ट्रेन रूकी तब वहां कांग्रेसी स्वराजी नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ था। पिताजी वहां ड्यूटी पर तैनात थे और पुलिस की वर्दी में श्री पाटिल को सैल्यूट किया और कांग्रेसी नेताओं से सूत की माला लेकर उन्हें पहनाते हुए कहा कि मैं आपके रास्ते पर आ रहा हूं। उन्होंने महात्मा गांधी और भारत माता की जय का घोष भी किया। इस घटना को ब्रिटिश सरकार ने शासन के साथ खुले रूप से विद्रोह के रूप में लिया और उनसे स्पष्टीकरण मांगते हुए खेद व्यक्त करने को कहा। लेकिन पिताजी को यह स्वीकार नहीं था कि वे महात्मा गांधी और भारत माता की जय कहने के कारण खेद व्यक्त करते और परिणामस्वरूप उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
आप कवर्धा में रहे वहां आपने किस समस्या को ज्यादा गंभीरता से लिया ? राजनांदगांव कलेक्टर रहते हुए आपने कई उपलब्धियां हासिल की। खासकर बाल विवाह रोकने और ग्रामीण स्वच्छता अभियान में आपने जो सफलता अर्जित की उसका विवरण जिसके लिए आप राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी हुए ।
कवर्धा में मैं 1987 से 1990 तक अनुविभागीय अधिकारी के रूप में पदस्थ था। उस समय कवर्धा जिला नहीं बना था। इस दौरान वहां परिवार कल्याण शिविर का आयोजन किया गया जो उस समय देश का सबसे बड़ा शिविर माना गया था। उसमें 1500 आपरेशन किए गए थे। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि कवर्धा में जो महात्मा गांधी का चौक है और जहां जयस्तंभ बना हुआ है वह पूरा क्षेत्र अतिक्रमण से भरा हुआ था, जो शहर का हृदय स्थल था। सबसे ज्यादा परेशानी 15 अगस्त और 26 जनवरी को ध्वजारोहण के दौरान होती थी। जगह नहीं होने से प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। इसके अलावा कानून व्यवस्था की समस्याएं भी खड़ी होती थी। हम लोगों ने उस क्षेत्र के लोगों को समझा कर लोगों की सहमति से 500 से ज्यादा अतिक्रमण हटवाए और करीब 25 करोड़ रूपए की जमीन को बेजा कब्जों से मुक्त कराया। वहां के व्यवसायियों को दूसरे स्थान पर जगह देकर बसाया गया जो कि अभी भी कवर्धा में नवीन बाजार के नाम से स्थापित है। इसके अलावा महात्मा गांधी मैदान में जयस्तंभ और शंकराचार्य के चबूतरे को चारों तरफ से घेर करके उसका सौंदर्यीकरण किया गया। यह बहुत बड़ा कार्य था और इसे पूरा करके मुझे बहुत संतोष प्राप्त हुआ।
राजनांदगांव में मैं दिसंबर 2003 से लेकर जून 2006 तक कलेक्टर रहा। वहां की सबसे बड़ी समस्या बाल विवाह कुरीति को लेकर थी। वहां पर इस दौरान एक अभियान चलाया गया और इसमें आम लोगों को भी जोड़ा गया। जनप्रतिनिधियों के अलावा इसमें साहू , कुर्मी, पटेल, सतनामी आदि समाज के लोगों को इसमें शामिल किया गया। समाज के लोगों के साथ बैठक ली और गांव-गांव में प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी व जनप्रतिनिधियों की टीम बना करके ऐसी व्यवस्था की गई कि कहीं पर भी यदि बाल विवाह होता है तो तत्काल इसकी सूचना कलेक्टर को दें। इसके लिए जिला स्तर पर एक कंट्रोल रूम बनाया गया था और उसके टेलीफोन नम्बर को पूरे जिले में प्रचारित किया गया था। इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने के लिए जनआंदोलन का स्वरूप दिया गया था और इसका इतना अच्छा परिणाम सामने आया। अगर कहीं बालविवाह होता भी तो खबर मिलती थी कि लोगों ने घर के अंदर लाईट बंद करके और ताला लगाकर बाल विवाह किया। इससे पहली बार लोगों के बीच यह संदेश गया कि बाल विवाह भी एक सामाजिक और कानूनी बुराई है। सन् 1930 से बाल विवाह निरोधक अधिनियम बना हुआ है लेकिन पहले कभी इसके क्रियान्वयन की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया था और इसका परिणाम यह रहा कि करीब 1000 बाल विवाह को रोका गया। राजनांदगांव कलेक्टर रहते हुए मैंने यह दावा किया था कि मेरे जिले में एक भी बाल विवाह नहीं हो रहा है और आज किसी भी जिले में कोई कलेक्टर इस तरह का दावा करने की स्थिति में नहीं है। इसी तरह संपूर्ण स्वच्छता अभियान में पहली बार राजनांदगांव जिले की 13 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम का दर्जा देते हुए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया गया। राजनांदगांव ही प्रदेश का पहला ऐसा जिला था जिसे यह पुरस्कार मिला। इसके बाद राज्य के अन्य जिलों में भी इस दिशा में कार्य हुए।
आपने बस्तर में भी कई योजनाएं चलाईं, वहां का अनुभव क्या रहा ? नक्सलवाद होने के बावजूद आपने वहां सफलता के झंडे गाड़े। इसकी विस्तृत जानकारी।
राजनांदगांव में जिस तरह संपूर्ण स्वच्छता अभियान का कार्य किया था वहीं बस्तर में यह कार्य काफी कठिन था क्योंकि राजनांदगांव ऐसा जिला है जहां साक्षरता सबसे अधिक है वहीं बस्तर में साक्षरता सबसे कम है। दूसरा राजनांदगांव जहां मैदानी जिला है, आवागमन के साधन अच्छे हैं वहीं, बस्तर वनाच्छादित, दुर्गम और जंगल के बीच बसा जिला है, जहां नक्सलवाद की समस्या भी व्याप्त है। इसलिए वहां शासकीय नीतियों और योजनाओं का क्रियान्वयन अन्य जिलों की तुलना में अधिक कठिन व चुनौतिपूर्ण रहता है। लेकिन यहां भी हमने ग्रामीण लोगों से मिलकर और पंचायत प्रतिनिधियों का सहयोग लेते हुए संपूर्ण स्वच्छता अभियान को क्रियान्वित किया। बस्तर क्षेत्र में दूषित पानी पीने से जनजनित बीमारियां अन्य जगहों की तुलना में अधिक थी। ऐसी स्थिति में वहां इस योजना का क्रियान्वयन किया जाना बहुत आवश्यक था। साफ-सफाई के प्रति भी वहां लोगों में जागरूकता कम है और इसका मूल कारण लोगों में साक्षरता की कमी है। बस्तर में मैं 15 जून 2006 से 14 अप्रैल 2008 तक कलेक्टर रहा। इस दौरान मैंने इस अभियान में तेजी लाने का प्रयास किया और इसका परिणाम यह रहा कि यहां की 27 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम घोषित किया गया और इन्हें भी राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कृत किया गया। उस वर्ष पूरे प्रदेश में बस्तर ही एकमात्र ऐसा जिला था जहां सर्वाधिक ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम का पुरस्कार दिया गया था। दूसरी एक महत्वपूर्ण समस्या जगदलपुर शहर में जनसंख्या का दबाव बढऩे और अतिक्रमण के कारण शहर का चेहरा विकृत हो जाना थी। इसके सुधार के लिए एक योजना बनाकर और लोगों से चर्चा कर शहर के सात प्रमुख मार्गों से अतिक्रमण हटाने का कार्य किया। सड़क के किनारे स्थित धार्मिक स्थलों को हटाना कठिन कार्य था इसके लिए सभी धर्मों के पुजारियों के साथ बैठक की गई और उनसे सहयोग मांगा गया। इस तरह से मार्ग पर आने वाले 15 धार्मिक स्थलों को स्वेच्छा से हटाया गया, जो बहुत पुराने थे और यातायात को प्रभावित कर रहे थे। इसके साथ ही करीब 11 करोड़ रूपए की एक परियोजना बनाकर सड़कें और नालियां बनाई गईं और वृक्षारोपण किया गया। अतिक्रमण हटाओं अभियान की सफलता यह रही कि 1000 से अधिक लोगों ने स्वेच्छापूर्वक अतिक्रमण हटा लिये। वहां एक और प्रयोग किया गया शहर के चौक-चौराहों पर किसी महापुरूष की प्रतिमां लगाने के स्थान पर बस्तर की कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली कलाकृतियां लगाईं गई ताकि पर्यटक बस्तर की कला और संस्कृति को जान सकें। शहर के सात चौराहों का जो सौंदर्यीकरण हुआ उसका पूरे प्रदेश में सराहना हुई और शासन ने इस तरह के कार्य अन्य जिलों में भी करने को कहा। एक और महत्वपूर्ण कार्य जो बस्तर में हुआ वह है औद्योगिकरण। औद्योगिकरण की दृष्टि से यह जिला पिछड़ा था। बस्तर में टाटा स्टील का 5 मिलियन टन क्षमता वाले इस्पात संयंत्र का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके लिए आसपास के दस गांवों में करीब 5 हजार एकड़ जमीन का भू-अर्जन की कार्रवाई को सफलतापूर्वक संपन्न कराया और 35 करोड़ से ज्यादा की राशि प्रभावित ग्रामीणों को वितरित की गई। इसके लिए नगरनार में बनने वाले एनएमडीसी के संयंत्र के लिए भी आवश्यक कार्रवाई की गई। एक और समस्या थी कि बस्तर कलेक्ट्रेट में कर्मचारी देर से कार्यलय आते थे। इसके अलावा यह भी शिकायत थी कि कुछ लोग कभी-कभी शराब पीकर भी कार्यलय आ जाते थे। इस स्थिति को देखते हुए बस्तर कलेक्ट्रेट को सेवासदन के रूप में विकसित किया गया। 1 जनवरी 2008 से स्थिति यह है कि कलेक्टर से लेकर सभी अधिकारी, कर्मचारी प्रतिदिन निर्धारित समय पर एक जगह इक_े होकर गांधीजी का प्रिय भजन 'वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जे पीर पराई जाणे रेÓ का गान करते हैं उसके बाद काम की शुरूआत होती है। इसका असर यह हुआ कि जो कर्मचारी शराब पीकर कार्यलय आते थे उन्होंने शराब पीना बंद कर दिया है। इसे मैं प्रशासन में किया गया बहुत बड़ा सफल प्रयोग मानता हूं।
आप उद्योग विभाग में भी रहे, उसके पहले रायपुर नगर निगम में प्रशासक। आज यह शहर छत्तीसगढ़ की राजधानी है इसका गौरव और बड़े इसके लिए क्या प्रयास होने चाहिए ?
जब मैं रायपुर नगर निगम का प्रशासक था तब यह व्यवस्था की थी कि पेयजल, प्रकाश और साफ-सफाई की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। मैं सोचता हूं कि यदि तीन चीजों पर ध्यान दिया जाए तो आम आदमी की अस्सी से नब्बे प्रतिशत समस्याओं का ऐसे ही समाधान हो जाता है। मैंने ये प्रयास किया था कि हर जोन के अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में सफाई व्यवस्था देखें, बिजली व्यवस्था देखें और पेयजल व्यवस्था पर सतत नजर रखें। जोन के अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया गया था कि वे रात में अपने क्षेत्रों में घूमकर यह देखें कि कितने खंभों में लाईट जल रही, कितने में नहीं। इसी प्रकार सफाई व्यवस्था देखने को भी कहा गया था। शहर के विकास में अतिक्रमण एक बड़ी समस्या थी जो अभी भी है। अपने छह माह के कार्यकाल के दौरान मैंने करीब 1000 अतिक्रमण हटवाए। उस समय पहली बार रायपुर में धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया था, जो अवैध थे। इसके अलावा बड़ी संख्या में वृक्षारोपण करवाया गया। वर्तमान समय में समग्र योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है।
आपको अतिक्रमण हटाओ अभियान का जुनून सा रहा है। बसाओ अभियान के लिए भी क्या ऐसा ही कुछ होता रहा है ?
अतिक्रमण हटाओ अभियान तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक प्रभावित लोगों के लिए समुचित व्यवस्था न की जाए, चाहे वह अतिक्रमण रिहाईशी हो या व्यवसायिक हो। दोनों की प्रकार के अतिक्रमण हटाने के पहले जो लोग प्रभावित हो रहे हैं उनकी बातों को सुनना पड़ेगा, उनकी समस्याओं पर विचार करना पड़ेगा जो भी यथासंभव मदद वैकल्पिक बसाहट के रूप में आवश्यक हो व उचित हो वह उन्हें देना चाहिए। जहां भी मैंने अतिक्रमण अभियान चलाया वहां कहीं भी ये स्थिति नहीं हुई है कि कभी कोई कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो। मैंने जब भी अभियान चलाया उसमें खासबात यह रही जिन लोगों का अतिक्रमण तोड़ा गया उन्होंने स्वंय इस कार्य में सहयोग प्रदान किया। बस्तर में हमने इतनी बड़ी संख्या में अतिक्रमण हटाए लेकिन कोई भी व्यक्ति कोर्ट नहीं गया और न ही किसी ने मुआवजे की मांग की। यदि अतिक्रमण हटाने के कार्य में बड़े और छोटे लोगों का भेदभाव न किया जाए तो लोगों का पूरा सहयोग रहता है और इससे अच्छा संदेश जाता है। नियत साफ हो और बिना किसी पक्षपात के ईमानदारी से काम किया जाए तो लोगों का विश्वास और सहयोग हासिल किया जा सकता है। हमने जहां-जहां अतिक्रमण हटाए लोगों की वैकल्पिक बसाहट का प्रयास किया है।
वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा इस वर्ष कर वसूली की क्या स्थिति रही है ?
इस वित्तीय वर्ष में 30 नवंबर तक की स्थिति में विभाग की वृद्धि दर करीब 3 प्रतिशत है। इसका अर्थ है विभाग ने नवंबर तक पिछले वर्ष की तुलना में 3 प्रतिशत अधिक वसूली की है। आथिक मंदी के चलते वसूली प्रभावित न हो इसके लिए विभाग द्वारा समुचित प्रयास किए जा रहे हैं।
सर्वाधिक राजस्व वसूली किस क्षेत्र से होती है ?
सर्वाधिक टेक्स वसूली भिलाई स्टील प्लांट, बालको, प्रकाश स्पंज आयरन, एसईसीएल और अन्य बड़ी कंपनियों के माध्यम से होती है। इसके अलावा पेट्रोल कंपनियां हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस्पात, कोयला, पेट्रोल और खनिज आधारित उद्योगों से सर्वाधिक राजस्व वसूली होती है।
सेल टेक्स चोरी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है ?
ऐसे क्षेत्र जहां सेल टेक्स चोरी की आशंका रहती है इसके लिए प्रवर्तन विंग गठित है। इसके लिए पूरे राज्य में दो उपायुक्त हैं जो स्थिति पर नजर रखते हैं। इनमें से एक का मुख्यालय रायपुर और एक का बिलासपुर में है। रिर्टन के आधार पर जिन संस्थानों पर शक होता है उन पर छापे की कार्रवाई की जाती है।
विभाग द्वारा उपभोक्ता जागरण पुरस्कार योजना शुरू की गई थी इसका कैसा प्रतिसाद रहा ?
उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने के लिए यह इनामी योजना शुरू की गई थी और लोगों का इसके प्रति अच्छा रूझान देखने को मिला। दुकानदार यदि बिल देता है तो उसे इसका लेखा-जोखा प्रस्तुत करना पड़ता है। सेल टेक्स अप्रत्यक्ष कर है जो डीलर के माध्यम से ही प्राप्त होता है। उपभोक्ता जागरण योजना के तहत ग्राहकों से यह कहा गया था कि वो 500 रुपए से अधिक की जो भी खरीदी करते हैं उसका बिल अवश्य प्राप्त करें। इसके लिए दीपावली का समय चुना गया था इसका कारण है कि इस दौरान सभी लोग खरीददारी करते हैं। इसमें उन वस्तुओं को शामिल किया गया था जिनकी खरीदारी आमतौर पर लोग दीपावली के समय करते ही हैं। यह योजना काफी सफल रही। लगभग 50 हजार बिल लोगों ने ड्राप बाक्स में डाले। इसका सबसे बड़ा फायदा यह रहा कि इस योजना के माध्यम से पहली बार वाणिज्यिक कर विभाग आम उपभोक्ताओं तक पहुंच पाया है। इससे उपभोक्ताओं में यह संदेश गया है कि कोई भी खरीदारी करते समय रसीद अवश्य लेनी चाहिए। विभाग द्वारा प्रदेश के 32 लाख मोबाइल उपभोक्ताओं को एसएमएस के जरिए संदेश भेजकर बताया गया कि जो भी खरीदारी करें उसकी रसीद अवश्य लें।
इस योजना के तहत उपभोक्ताओं को पुरस्कार कब तक दिए जाएंगे ?
चुनाव के कारण राज्य में अभी आदर्श आचार संहिता लागू है। चुनाव संपन्न होने और आचार संहिता समाप्त होने के बाद पुरस्कार देने की कार्रवाई शुरू की जाएगी।
अवैध शराब की बिक्री रोकने के क्या प्रयास किए जा रहे हैं ?
इसके लिए जांच उडऩदस्ता बनाया गया है। जहां पर शिकायत प्राप्त होती है वहां टीम जाकर कार्रवाई करती है।
केन्द्र सरकार 1 अप्रैल 2010 से गुड्स एण्ड सर्विस टेक्स (जीएसटी) लागू करने जा रही है। इसके लिए विभाग द्वारा क्या तैयारियां की गई हैं ?
जीएसटी का मतलब गुड्स एण्ड सर्विस टेक्स है। जिस तरह पहले सेल टेक्स हुआ करता था उसके बाद वैल्यू एडेड टेक्स आया, इसी कड़ी में जीएसटी है। इसमें कई तरह के करों को एक में ही मिला दिया गया है जैसे मनोरंजन कर, विलासिता कर आदि। इसमें वस्तु और सेवाकर मिला होगा। यह दो प्रकार का होगा एक स्टेट जीएसटी और दूसरा सेंट्रल जीएसटी होगा। इसमें केन्द्र और राज्य अलग-अलग वस्तुओं पर कर लगाएगा। इसमें कुछ नए प्रावधानों को शामिल किया गया है। हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे 1 अप्रैल 2010 की बजाय 1 अप्रैल 2011 से लागू करने की मांग रखी है। अभी इस बारे में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। इस संबंध में वाणिज्यिक कर विभाग व्यापारियों से चर्चा कर उनकी राय भी जान रहा है और यह प्रक्रिया अभी चल रही है।
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मिश्र जी आपकी प्रशासनिक कार्यप्रणाली में ऐसी कौन सी बात है कि आप जहां भी रहते हैं वह समय वहां के लिए आदर्श और इतिहास बन जाता है ?
शासकीय योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन इस तरह से किया जाना कि आम आदमी व सर्वहारा वर्ग उससे जुड़ जाए। किसी भी योजना का क्रियान्वयन हम जब उसको धरातल तक पहुंचाकर करना चाहते हैं तो ये चीजें बहुत आवश्यक होती हैं। ब्रिटिश काल में प्रशासनिक अधिकारी जनता से दूरी बनाकर चलते थे, लेकिन अब प्रशासन जनता से जुड़कर कार्य करता है। जनकल्याण के लिए जरूरी है कि अधिकारी लोगों से सामंजस्य बनाकर चलें, यदि ऐसा नहीं होने पर किसी भी योजना का क्रियान्वयन शत-प्रतिशत उसकी भावना के अनुरूप हो पाना संभव नहीं है। आम नागरिकों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करके ही शासकीय नीतियों और योजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सकता है। अनावश्यक रूप से या कृत्रिम ढंग से बनाई गई दूरी का स्पष्ट प्रभाव योजनाओं की सफलता पर पड़ता है। यदि कोई अधिकारी आम लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए तत्पर रहता है तो लोगों के बीच इसका अच्छा संदेश जाता है और शासन की अच्छी छवि निर्मित होती है। यही कारण है कि अच्छा कार्य करने वाले अधिकारी को लोग याद रखते हैं।
आप छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र हैं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के सुपुत्र हैं। अपने पिता को आपने किस स्वरूप में जीवन का आदर्श बनाया ? उनकी स्मृति में राज्य में कौन-कौन से कार्य चल रहे हैं ? उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ बताएं।
मेरे पिताजी जीवन में विपरित परिस्थितियों का समना करते हुए अपने आदर्शों पर दृढ़ता से कायम रहे। आज सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि विपरित परिस्थितियों में बहुत से लोग अपने सिद्धांतों और जीवन शैली के बारे में कई बार समझौता कर लेते हैं। उन्होंने हमेशा विपरित परिस्थितियों को स्वीकार किया, उसका सामना किया और संघर्ष करते रहे लेकिन अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया। उनके व्यक्तित्व के इस पहलु को मैं अपने लिए आदर्श मानता हूं और इससे मुझे हमेशा प्रेरणा मिलती रहती है। जब भी कभी विपरित परिस्थितियां आती हैं और ऐसा लगता है कि आगे का रास्ता अंधकारमय है ऐसे में पिताजी की स्मृति एक आत्मिक बल और प्रेरणा प्रदान करती है। पिताजी जबतक जीवित रहे उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में न तो अपना नाम जुड़वाया और न ही उन्होंने इसका कोई लाभ अपने या अपने परिवार के लिए लिया। उनके स्वर्गवास होने के पश्चात् शासन ने स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को देखते हुए शासन ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करते हुए उनका नाम जोड़ा था। सरकार ने उनके नाम पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्विद्यालय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लखनलाल मिश्र शोध पीठ की स्थापना की। मेरी जानकारी में संभवत: किसी स्वतंत्रता संग्राम के नाम पर देश की यह पहली शोध पीठ है। इसमें छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले ऐसे लोग जिनको लोगों ने भुला दिया है ऐसे लोगों की जानकारी एकत्रित करना और भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में उनके योगदान को रेखांकित करना, इस शोध पीठ का उद्देश्य है। इसके अलावा रायपुर नगर निगम द्वारा एक व्यावसायिक परिसर का नामकरण भी पिताजी के नाम पर किया गया है। रायपुर जिले के तिल्दा के पास पैतृक गांव मुरा में जलसंसाधन विभाग का तालाब है उसका नामकरण भी शासन ने पिताजी के नाम पर किया है।
पिताजी दुर्ग थाने के प्रभारी थे। इसी दौरान 15 दिसंबर 1945 को तात्कालीन आईसीएस अधिकारी आर.के. पाटिल महात्मा गांधी के आह्वान पर शासकीय सेवा से इस्तीफा देकर नागपुर जा रहे थे और दुर्ग रेलवे स्टेशन में जब उनकी ट्रेन रूकी तब वहां कांग्रेसी स्वराजी नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ था। पिताजी वहां ड्यूटी पर तैनात थे और पुलिस की वर्दी में श्री पाटिल को सैल्यूट किया और कांग्रेसी नेताओं से सूत की माला लेकर उन्हें पहनाते हुए कहा कि मैं आपके रास्ते पर आ रहा हूं। उन्होंने महात्मा गांधी और भारत माता की जय का घोष भी किया। इस घटना को ब्रिटिश सरकार ने शासन के साथ खुले रूप से विद्रोह के रूप में लिया और उनसे स्पष्टीकरण मांगते हुए खेद व्यक्त करने को कहा। लेकिन पिताजी को यह स्वीकार नहीं था कि वे महात्मा गांधी और भारत माता की जय कहने के कारण खेद व्यक्त करते और परिणामस्वरूप उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
आप कवर्धा में रहे वहां आपने किस समस्या को ज्यादा गंभीरता से लिया ? राजनांदगांव कलेक्टर रहते हुए आपने कई उपलब्धियां हासिल की। खासकर बाल विवाह रोकने और ग्रामीण स्वच्छता अभियान में आपने जो सफलता अर्जित की उसका विवरण जिसके लिए आप राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी हुए ।
कवर्धा में मैं 1987 से 1990 तक अनुविभागीय अधिकारी के रूप में पदस्थ था। उस समय कवर्धा जिला नहीं बना था। इस दौरान वहां परिवार कल्याण शिविर का आयोजन किया गया जो उस समय देश का सबसे बड़ा शिविर माना गया था। उसमें 1500 आपरेशन किए गए थे। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि कवर्धा में जो महात्मा गांधी का चौक है और जहां जयस्तंभ बना हुआ है वह पूरा क्षेत्र अतिक्रमण से भरा हुआ था, जो शहर का हृदय स्थल था। सबसे ज्यादा परेशानी 15 अगस्त और 26 जनवरी को ध्वजारोहण के दौरान होती थी। जगह नहीं होने से प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। इसके अलावा कानून व्यवस्था की समस्याएं भी खड़ी होती थी। हम लोगों ने उस क्षेत्र के लोगों को समझा कर लोगों की सहमति से 500 से ज्यादा अतिक्रमण हटवाए और करीब 25 करोड़ रूपए की जमीन को बेजा कब्जों से मुक्त कराया। वहां के व्यवसायियों को दूसरे स्थान पर जगह देकर बसाया गया जो कि अभी भी कवर्धा में नवीन बाजार के नाम से स्थापित है। इसके अलावा महात्मा गांधी मैदान में जयस्तंभ और शंकराचार्य के चबूतरे को चारों तरफ से घेर करके उसका सौंदर्यीकरण किया गया। यह बहुत बड़ा कार्य था और इसे पूरा करके मुझे बहुत संतोष प्राप्त हुआ।
राजनांदगांव में मैं दिसंबर 2003 से लेकर जून 2006 तक कलेक्टर रहा। वहां की सबसे बड़ी समस्या बाल विवाह कुरीति को लेकर थी। वहां पर इस दौरान एक अभियान चलाया गया और इसमें आम लोगों को भी जोड़ा गया। जनप्रतिनिधियों के अलावा इसमें साहू , कुर्मी, पटेल, सतनामी आदि समाज के लोगों को इसमें शामिल किया गया। समाज के लोगों के साथ बैठक ली और गांव-गांव में प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी व जनप्रतिनिधियों की टीम बना करके ऐसी व्यवस्था की गई कि कहीं पर भी यदि बाल विवाह होता है तो तत्काल इसकी सूचना कलेक्टर को दें। इसके लिए जिला स्तर पर एक कंट्रोल रूम बनाया गया था और उसके टेलीफोन नम्बर को पूरे जिले में प्रचारित किया गया था। इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने के लिए जनआंदोलन का स्वरूप दिया गया था और इसका इतना अच्छा परिणाम सामने आया। अगर कहीं बालविवाह होता भी तो खबर मिलती थी कि लोगों ने घर के अंदर लाईट बंद करके और ताला लगाकर बाल विवाह किया। इससे पहली बार लोगों के बीच यह संदेश गया कि बाल विवाह भी एक सामाजिक और कानूनी बुराई है। सन् 1930 से बाल विवाह निरोधक अधिनियम बना हुआ है लेकिन पहले कभी इसके क्रियान्वयन की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया था और इसका परिणाम यह रहा कि करीब 1000 बाल विवाह को रोका गया। राजनांदगांव कलेक्टर रहते हुए मैंने यह दावा किया था कि मेरे जिले में एक भी बाल विवाह नहीं हो रहा है और आज किसी भी जिले में कोई कलेक्टर इस तरह का दावा करने की स्थिति में नहीं है। इसी तरह संपूर्ण स्वच्छता अभियान में पहली बार राजनांदगांव जिले की 13 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम का दर्जा देते हुए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया गया। राजनांदगांव ही प्रदेश का पहला ऐसा जिला था जिसे यह पुरस्कार मिला। इसके बाद राज्य के अन्य जिलों में भी इस दिशा में कार्य हुए।
आपने बस्तर में भी कई योजनाएं चलाईं, वहां का अनुभव क्या रहा ? नक्सलवाद होने के बावजूद आपने वहां सफलता के झंडे गाड़े। इसकी विस्तृत जानकारी।
राजनांदगांव में जिस तरह संपूर्ण स्वच्छता अभियान का कार्य किया था वहीं बस्तर में यह कार्य काफी कठिन था क्योंकि राजनांदगांव ऐसा जिला है जहां साक्षरता सबसे अधिक है वहीं बस्तर में साक्षरता सबसे कम है। दूसरा राजनांदगांव जहां मैदानी जिला है, आवागमन के साधन अच्छे हैं वहीं, बस्तर वनाच्छादित, दुर्गम और जंगल के बीच बसा जिला है, जहां नक्सलवाद की समस्या भी व्याप्त है। इसलिए वहां शासकीय नीतियों और योजनाओं का क्रियान्वयन अन्य जिलों की तुलना में अधिक कठिन व चुनौतिपूर्ण रहता है। लेकिन यहां भी हमने ग्रामीण लोगों से मिलकर और पंचायत प्रतिनिधियों का सहयोग लेते हुए संपूर्ण स्वच्छता अभियान को क्रियान्वित किया। बस्तर क्षेत्र में दूषित पानी पीने से जनजनित बीमारियां अन्य जगहों की तुलना में अधिक थी। ऐसी स्थिति में वहां इस योजना का क्रियान्वयन किया जाना बहुत आवश्यक था। साफ-सफाई के प्रति भी वहां लोगों में जागरूकता कम है और इसका मूल कारण लोगों में साक्षरता की कमी है। बस्तर में मैं 15 जून 2006 से 14 अप्रैल 2008 तक कलेक्टर रहा। इस दौरान मैंने इस अभियान में तेजी लाने का प्रयास किया और इसका परिणाम यह रहा कि यहां की 27 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम घोषित किया गया और इन्हें भी राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कृत किया गया। उस वर्ष पूरे प्रदेश में बस्तर ही एकमात्र ऐसा जिला था जहां सर्वाधिक ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम का पुरस्कार दिया गया था। दूसरी एक महत्वपूर्ण समस्या जगदलपुर शहर में जनसंख्या का दबाव बढऩे और अतिक्रमण के कारण शहर का चेहरा विकृत हो जाना थी। इसके सुधार के लिए एक योजना बनाकर और लोगों से चर्चा कर शहर के सात प्रमुख मार्गों से अतिक्रमण हटाने का कार्य किया। सड़क के किनारे स्थित धार्मिक स्थलों को हटाना कठिन कार्य था इसके लिए सभी धर्मों के पुजारियों के साथ बैठक की गई और उनसे सहयोग मांगा गया। इस तरह से मार्ग पर आने वाले 15 धार्मिक स्थलों को स्वेच्छा से हटाया गया, जो बहुत पुराने थे और यातायात को प्रभावित कर रहे थे। इसके साथ ही करीब 11 करोड़ रूपए की एक परियोजना बनाकर सड़कें और नालियां बनाई गईं और वृक्षारोपण किया गया। अतिक्रमण हटाओं अभियान की सफलता यह रही कि 1000 से अधिक लोगों ने स्वेच्छापूर्वक अतिक्रमण हटा लिये। वहां एक और प्रयोग किया गया शहर के चौक-चौराहों पर किसी महापुरूष की प्रतिमां लगाने के स्थान पर बस्तर की कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली कलाकृतियां लगाईं गई ताकि पर्यटक बस्तर की कला और संस्कृति को जान सकें। शहर के सात चौराहों का जो सौंदर्यीकरण हुआ उसका पूरे प्रदेश में सराहना हुई और शासन ने इस तरह के कार्य अन्य जिलों में भी करने को कहा। एक और महत्वपूर्ण कार्य जो बस्तर में हुआ वह है औद्योगिकरण। औद्योगिकरण की दृष्टि से यह जिला पिछड़ा था। बस्तर में टाटा स्टील का 5 मिलियन टन क्षमता वाले इस्पात संयंत्र का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके लिए आसपास के दस गांवों में करीब 5 हजार एकड़ जमीन का भू-अर्जन की कार्रवाई को सफलतापूर्वक संपन्न कराया और 35 करोड़ से ज्यादा की राशि प्रभावित ग्रामीणों को वितरित की गई। इसके लिए नगरनार में बनने वाले एनएमडीसी के संयंत्र के लिए भी आवश्यक कार्रवाई की गई। एक और समस्या थी कि बस्तर कलेक्ट्रेट में कर्मचारी देर से कार्यलय आते थे। इसके अलावा यह भी शिकायत थी कि कुछ लोग कभी-कभी शराब पीकर भी कार्यलय आ जाते थे। इस स्थिति को देखते हुए बस्तर कलेक्ट्रेट को सेवासदन के रूप में विकसित किया गया। 1 जनवरी 2008 से स्थिति यह है कि कलेक्टर से लेकर सभी अधिकारी, कर्मचारी प्रतिदिन निर्धारित समय पर एक जगह इक_े होकर गांधीजी का प्रिय भजन 'वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जे पीर पराई जाणे रेÓ का गान करते हैं उसके बाद काम की शुरूआत होती है। इसका असर यह हुआ कि जो कर्मचारी शराब पीकर कार्यलय आते थे उन्होंने शराब पीना बंद कर दिया है। इसे मैं प्रशासन में किया गया बहुत बड़ा सफल प्रयोग मानता हूं।
आप उद्योग विभाग में भी रहे, उसके पहले रायपुर नगर निगम में प्रशासक। आज यह शहर छत्तीसगढ़ की राजधानी है इसका गौरव और बड़े इसके लिए क्या प्रयास होने चाहिए ?
जब मैं रायपुर नगर निगम का प्रशासक था तब यह व्यवस्था की थी कि पेयजल, प्रकाश और साफ-सफाई की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। मैं सोचता हूं कि यदि तीन चीजों पर ध्यान दिया जाए तो आम आदमी की अस्सी से नब्बे प्रतिशत समस्याओं का ऐसे ही समाधान हो जाता है। मैंने ये प्रयास किया था कि हर जोन के अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में सफाई व्यवस्था देखें, बिजली व्यवस्था देखें और पेयजल व्यवस्था पर सतत नजर रखें। जोन के अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया गया था कि वे रात में अपने क्षेत्रों में घूमकर यह देखें कि कितने खंभों में लाईट जल रही, कितने में नहीं। इसी प्रकार सफाई व्यवस्था देखने को भी कहा गया था। शहर के विकास में अतिक्रमण एक बड़ी समस्या थी जो अभी भी है। अपने छह माह के कार्यकाल के दौरान मैंने करीब 1000 अतिक्रमण हटवाए। उस समय पहली बार रायपुर में धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया था, जो अवैध थे। इसके अलावा बड़ी संख्या में वृक्षारोपण करवाया गया। वर्तमान समय में समग्र योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है।
आपको अतिक्रमण हटाओ अभियान का जुनून सा रहा है। बसाओ अभियान के लिए भी क्या ऐसा ही कुछ होता रहा है ?
अतिक्रमण हटाओ अभियान तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक प्रभावित लोगों के लिए समुचित व्यवस्था न की जाए, चाहे वह अतिक्रमण रिहाईशी हो या व्यवसायिक हो। दोनों की प्रकार के अतिक्रमण हटाने के पहले जो लोग प्रभावित हो रहे हैं उनकी बातों को सुनना पड़ेगा, उनकी समस्याओं पर विचार करना पड़ेगा जो भी यथासंभव मदद वैकल्पिक बसाहट के रूप में आवश्यक हो व उचित हो वह उन्हें देना चाहिए। जहां भी मैंने अतिक्रमण अभियान चलाया वहां कहीं भी ये स्थिति नहीं हुई है कि कभी कोई कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो। मैंने जब भी अभियान चलाया उसमें खासबात यह रही जिन लोगों का अतिक्रमण तोड़ा गया उन्होंने स्वंय इस कार्य में सहयोग प्रदान किया। बस्तर में हमने इतनी बड़ी संख्या में अतिक्रमण हटाए लेकिन कोई भी व्यक्ति कोर्ट नहीं गया और न ही किसी ने मुआवजे की मांग की। यदि अतिक्रमण हटाने के कार्य में बड़े और छोटे लोगों का भेदभाव न किया जाए तो लोगों का पूरा सहयोग रहता है और इससे अच्छा संदेश जाता है। नियत साफ हो और बिना किसी पक्षपात के ईमानदारी से काम किया जाए तो लोगों का विश्वास और सहयोग हासिल किया जा सकता है। हमने जहां-जहां अतिक्रमण हटाए लोगों की वैकल्पिक बसाहट का प्रयास किया है।
वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा इस वर्ष कर वसूली की क्या स्थिति रही है ?
इस वित्तीय वर्ष में 30 नवंबर तक की स्थिति में विभाग की वृद्धि दर करीब 3 प्रतिशत है। इसका अर्थ है विभाग ने नवंबर तक पिछले वर्ष की तुलना में 3 प्रतिशत अधिक वसूली की है। आथिक मंदी के चलते वसूली प्रभावित न हो इसके लिए विभाग द्वारा समुचित प्रयास किए जा रहे हैं।
सर्वाधिक राजस्व वसूली किस क्षेत्र से होती है ?
सर्वाधिक टेक्स वसूली भिलाई स्टील प्लांट, बालको, प्रकाश स्पंज आयरन, एसईसीएल और अन्य बड़ी कंपनियों के माध्यम से होती है। इसके अलावा पेट्रोल कंपनियां हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस्पात, कोयला, पेट्रोल और खनिज आधारित उद्योगों से सर्वाधिक राजस्व वसूली होती है।
सेल टेक्स चोरी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है ?
ऐसे क्षेत्र जहां सेल टेक्स चोरी की आशंका रहती है इसके लिए प्रवर्तन विंग गठित है। इसके लिए पूरे राज्य में दो उपायुक्त हैं जो स्थिति पर नजर रखते हैं। इनमें से एक का मुख्यालय रायपुर और एक का बिलासपुर में है। रिर्टन के आधार पर जिन संस्थानों पर शक होता है उन पर छापे की कार्रवाई की जाती है।
विभाग द्वारा उपभोक्ता जागरण पुरस्कार योजना शुरू की गई थी इसका कैसा प्रतिसाद रहा ?
उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने के लिए यह इनामी योजना शुरू की गई थी और लोगों का इसके प्रति अच्छा रूझान देखने को मिला। दुकानदार यदि बिल देता है तो उसे इसका लेखा-जोखा प्रस्तुत करना पड़ता है। सेल टेक्स अप्रत्यक्ष कर है जो डीलर के माध्यम से ही प्राप्त होता है। उपभोक्ता जागरण योजना के तहत ग्राहकों से यह कहा गया था कि वो 500 रुपए से अधिक की जो भी खरीदी करते हैं उसका बिल अवश्य प्राप्त करें। इसके लिए दीपावली का समय चुना गया था इसका कारण है कि इस दौरान सभी लोग खरीददारी करते हैं। इसमें उन वस्तुओं को शामिल किया गया था जिनकी खरीदारी आमतौर पर लोग दीपावली के समय करते ही हैं। यह योजना काफी सफल रही। लगभग 50 हजार बिल लोगों ने ड्राप बाक्स में डाले। इसका सबसे बड़ा फायदा यह रहा कि इस योजना के माध्यम से पहली बार वाणिज्यिक कर विभाग आम उपभोक्ताओं तक पहुंच पाया है। इससे उपभोक्ताओं में यह संदेश गया है कि कोई भी खरीदारी करते समय रसीद अवश्य लेनी चाहिए। विभाग द्वारा प्रदेश के 32 लाख मोबाइल उपभोक्ताओं को एसएमएस के जरिए संदेश भेजकर बताया गया कि जो भी खरीदारी करें उसकी रसीद अवश्य लें।
इस योजना के तहत उपभोक्ताओं को पुरस्कार कब तक दिए जाएंगे ?
चुनाव के कारण राज्य में अभी आदर्श आचार संहिता लागू है। चुनाव संपन्न होने और आचार संहिता समाप्त होने के बाद पुरस्कार देने की कार्रवाई शुरू की जाएगी।
अवैध शराब की बिक्री रोकने के क्या प्रयास किए जा रहे हैं ?
इसके लिए जांच उडऩदस्ता बनाया गया है। जहां पर शिकायत प्राप्त होती है वहां टीम जाकर कार्रवाई करती है।
केन्द्र सरकार 1 अप्रैल 2010 से गुड्स एण्ड सर्विस टेक्स (जीएसटी) लागू करने जा रही है। इसके लिए विभाग द्वारा क्या तैयारियां की गई हैं ?
जीएसटी का मतलब गुड्स एण्ड सर्विस टेक्स है। जिस तरह पहले सेल टेक्स हुआ करता था उसके बाद वैल्यू एडेड टेक्स आया, इसी कड़ी में जीएसटी है। इसमें कई तरह के करों को एक में ही मिला दिया गया है जैसे मनोरंजन कर, विलासिता कर आदि। इसमें वस्तु और सेवाकर मिला होगा। यह दो प्रकार का होगा एक स्टेट जीएसटी और दूसरा सेंट्रल जीएसटी होगा। इसमें केन्द्र और राज्य अलग-अलग वस्तुओं पर कर लगाएगा। इसमें कुछ नए प्रावधानों को शामिल किया गया है। हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे 1 अप्रैल 2010 की बजाय 1 अप्रैल 2011 से लागू करने की मांग रखी है। अभी इस बारे में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। इस संबंध में वाणिज्यिक कर विभाग व्यापारियों से चर्चा कर उनकी राय भी जान रहा है और यह प्रक्रिया अभी चल रही है।
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