Wednesday, March 10, 2010

कब रूकेगा अंधविश्वासों का सिलसिला ?

कभी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने तो कभी तंत्र-मंत्र सिध्दियों के लिए मासूमों की बलि देने जैसे क्रूरतम अंधविश्वासों का सिलसिला आखिर कब थमेगा ? विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रण्ाी छत्तीसगढ़ राय में इस तरह की घटनाएं आज भी आम हैं। क्रूरता की पराकाष्ठा पार कर हाल ही सामने आई दो घटनाओं ने एक बार फिर सोचने के लिए झकझोर दिया है कि आखिर हम किस युग में जी रहे हैं। रोती, बिलखती, मौत के बाहों में झूलती जिंदगी भले ही इक्कीसवीं सदी के दसवें पायदान पर आ खड़ी हो गई हो, लेकिन आज के वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास की पकड़ ढीली नहीं हुई है। धमतरी जिले के एक बैगा ने छह साल के मासूम बच्चे की बलि दे दी। जिला मुख्यालय से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बंजारी ग्राम के इस बैगा ने बच्चे का गला काटकर उसकी लाश बाड़ी में फेंक दी थी। वहीं राजधानी से सटे टेकारी गांव में एक युवक ने अपनी विधवा भाभी की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी कि उसे उसके टोनही होने का शक था। इसी महीने घटित एक अन्य घटना में दुर्ग जिले के बेरला थाना क्षेत्र में एक गांव के कुछ लोगों द्वारा एक महिला को टोनही के नाम पर आए दिन सरे-राह प्रताड़ित किया जा रहा था। इस मामले में गनीमत इतनी रही कि उस महिला ने समय रहते पुलिस को सूचित कर दिया नहीं तो शायद वह भी अंधविश्वास के ठेकेदारों की दरिंदगी का शिकार हो जाती।
छत्तीसगढ़ में टोनही के आरोप में महिलाओं की प्रताड़ना का दौर कब थमेगा, इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है। राय के पिछड़े अंचलों में टोनही यानि डायन घोषित करके महिलाओं को सरेआम जलील करने और मास हिस्टीरिया की क्रूरतम परिणति के रूप में टोनहियों को मौत के घाट उतार देने की अनेक रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाएं इस प्रदेश के माथे पर कलंक हैं। हालांकि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इस कलंक को धोने का भरसर प्रयास किया। छत्तीसगढ़ विधान सभा में 19 जुलाई 2005 का दिन इस .ष्टिकोण से ऐतिहासिक रहा। सरकार के प्रयास से इस दिन टोनही प्रथा उन्मूलन विधेयक 2005 सदन में पारित हुआ। इस कड़े कानून के बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा के अभिशाप से महिलाओं को मुक्ति मिल जाएगी।
लेकिन इतना कड़ा कानून लाने के बाद भी इस तरह की घटनाओं के बंद होने का सिलसिला थमा नहीं। आखिरकार राय की पुलिस ने भी टोनही प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने और इस कानून की जानकारी देने का बीड़ा उठाया। पिछले वर्ष पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन की पहल पर पुलिस विभाग द्वारा अंधविश्वासों से मुक्त करने के लिए राय के हर गाँव से एक-एक कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई गई। ऐसा कहा गया था कि ये प्रशिक्षित कार्यकर्ता अपने-अपने गाँव में पांरपरिक रूप से प्रचलित अंधविश्वासों, जैसे टोनही, डायन, झाड़-फूँक, धन दोगुना करने की चालाकियों, गड़े धन निकालने, शारीरिक, मानसिक आपदाओं को हल करने के लिए गंडे ताबीज, चमत्कारिक पत्थर एवं छद्म औषधियों का प्रयोग कर धन कमाने वाली गतिविधियों से सचेत करते हुए उनके पीछे की चालाकियों एवं ट्रिक्स की वैज्ञानिक व्याख्या और प्रायोगिक प्रदर्शन करके जनजागरण करेंगे। इस योजना के तहत करीब बीस हजार स्वंसेवी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने का दावा किया गया था, लेकिन पुलिस का यह प्रयास भी खोखला साबित हुआ। अब राय की पुलिस को भी यह सोचना होगा कि आखिर उसके प्रयास में कहां खोट रह गई।
गांवों में ही नहीं शहरों में भी अंधविश्वास की पैठ बहुत गहरे तक है। कुछ वर्ष पहले एक अफवाह फैली रात में डायन के घूमने की, जो प्याज मांगती है और ऐसा नहीं करने पर संतान को खतरा है। इस बे सिर-पैर वाली खबर का असर ऐसा दिखा कि गांवों के अलावा शहरों में यहां तक की राजधानी में भी लोगों ने अपने घर के सामने गोबर से ओम नम: शिवाय तक लिखवा डाला और तो और राय के एक पूर्व वरिष्ठ नेता तथा राय के कर्णधार रहे राजनीतिज्ञ तथा एक मंत्री भी इस काम में पीछे नहीं रहे। सवाल यह उठता है कि क्या अंधविश्वास इस कदर हमारे दिलों-दिमाग में अपनी जड़े जमाए हुए है ? ग्रामीण क्षेत्रों में टोनही के नाम पर हो रही प्रताड़ना को लेकर एक अहम सवाल यह भी खड़ा होता है कि गरीब, मजदूरी करने वाली, विधवा, परित्यक्ता और बेसहारा महिलाएं ही क्यों टोनही का शिकार होती हैं, रसूख वाले घरों की महिलाएं क्यों नहीं ? यह एक अभिशप्त, अशिक्षा तथा गरीबीजन्य त्रासदी है और ऐसी सामाजिक विकृति है जिससे हर ऐसी नारी जूझ रही है। बेसहारा और कमजोर महिलाओं को सताने का औजार है टोनही प्रथा। ताजा हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि केवल कड़ा कानून बना देने या कुछ लोगों को प्रशिक्षण दे देने से ही यह समस्या हल हो जाएगी। इसके लिए शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ लोगों के दिमाग में बैठे अंधविश्वास के भूत को भी निकालना होगा। ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे राय के किसी भी कोने में रहने वाली महिला को यह जानकारी हो सके कि ऐसी स्थिति में उसे क्या करना चाहिए। साथ ही सरकारी अमला भी ऐसे मामले में गंभीरतापूर्वक त्वरित कार्रवाई करे तभी इस अभिशाप से निपटा जा सकता है।
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1 comment:

  1. वास्तव में यदि हम आज की इस्थिति पर गौर करें तो हम पाते हैं कि आज की परिस्थितियां बहुत हद तक अंग्रेजों के ज़माने जैसी हो चुकी है . वही बेरोज़गारी ,भ्रष्टाचार , लूट - खसोट चारों ओर फैल चुकी है .इसलिय आज हमें एक बार फिर आवश्यकता है उन महान क्रांतिकारियों की जिन्होंने हमें आज़ादी की सौगात दिलाई थी . जय हिंद .

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