Sunday, October 11, 2009

मुलाकातः युवा कहानीकार आनंद हर्षुल से

(मेरे द्वारा २६-0७-09 को लिया गया साक्षात्कार)
आपने ने लेखन की शुरूआत कब की ?
मैंने लेखन की शुरूआत 1980 के आसपास की। पहले मैं कविताएं लिखा करता था। सन् 1984 में मेरी पहली कहानी छपी उसका शीर्षक था ’’बैठे हुए हाथी के भीतर लड़का’’। मेरा पहला कहानी संग्रह भी इसी शीर्षक के नाम से है।
क्या कविता लिखने का सिलसिला अब भी जारी है ?
नहीं। कहानी लिखने के बाद कविताएं लिखना छूट गईं। सामान्यः लोग लेखन की शुरूआत कविता से करते हैं, लेकिन बाद कई लोगों की दिशा बदल जाती है। वरिष्ठ साहित्यकार नामवर सिंह भी कभी कविता लिखा करते थे, लेकिन अब बहुत से लोग जानते भी नहीं होंगे कि वे कविता लिखते थे।
अभी तक आपके कितने कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं ?
अभी तक मेरे दो कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पहला कहानी संग्रह ’’बैठे हुए हाथी के भीतर लड़का’’ और दूसरा ’’पृथ्वी को चंद्रमा’’ है। इसके अलावा मेरा तीसरा कहानी संग्रह जल्द ही आने वाला है जिसका शीर्षक है ’’अधखाया फल’’।
आपने कभी उपन्यास लिखने के बारे में नहीं सोचा ?
उपन्यास लिखने की कोशिष तो की, लेकिन नौकरी के कारण उतना समय मिलता नहीं है। दूसरा कारण उपन्यास लिखने के लिए वैसा मन बन जाना जरूरी है। कई वर्षों से एक उपन्यास का बारह-तेरह पेज लिखकर बैठा हूं, लेकिन पूरा नहीं कर पा रहा हंू।
आपकी लिखी कोई कहानी, जो आपको विशेष पसंद हो ?
मेरी कुछ कहानियां मुझे अच्छी लगती हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वो मेरे पाठकों को भी उतनी ही अच्छी लगें। जैसे- ’’पृथ्वी को चंद्रमा’’, ’’रेगिस्तान में झील’’ आदि कुछ कहानियां हैं जो मुझे विशेष पसंद हैं। ऐसी क्या चीज है जो आपको कहानी लिखने के लिए प्रेरित करती है ?
कोई दृश्य जो मेरे हृदय को स्पर्श करे, लिखने को प्रेरित करता है। जैसे ’’रेगिस्तान में झील’’ कहानी लिखने की प्रेरणा मुझे राजस्थान में मिली। रेगिस्तान में डूबते सूरज की किरणों ने मुझे यह कहानी लिखने को मजबूर किया। कहानी लिखने के लिए पूरा कथानक होने की जरूरत नहीं, केवल एक दृश्य ही काफी होता है।
क्या आप मानते हैं कि लोग अब साहित्य से दूर हो रहे हैं ?
हां मैं मानता हूं कि साहित्य के पाठक कम हो रहे हैं। अब एक लेखक ही दूसरे लेखक को पढ़ता है। आज के दौर में एक पड़ोसी भी नहीं जानता कि उसके पड़ोस में कोई लेखक रहता है। पड़ोस में कोई लेखक रहता है इस बात का गर्व करने का कोई कारण नहीं है।
हिंदी साहित्य आज किस दिशा में जा रहा है ?
अगर कहानियों की बात करें तो मुझे लगता है इसकी स्थिति काफी अच्छी है। पिछले 10 सालों में काफी अच्छी कहानियां लिखी गई हैं, जो विश्व स्तर की ही हैं। इस बीच लेखकों की नई पीढ़ी भी सामने आई है। लेकिन मुझे लगता है कि हिंदी का प्रचार प्रसार विश्व स्तर पर उतना नहीं है जितना होना चाहिए। इसकी चिंता किसी को नहीं है। खासकर कविता की स्थिति कुछ ठहर सी गई है, वो अस्सी-नब्बे के दशक से आगे नहीं बढ़ पाई है। हालंाकि यह मेरा निजी विचार है।
हिन्दी कहानियों में क्या बदलाव आया है ?
मुझे लगता है कि हिंदी की नब्बे प्रतिशत कहानियां मुंशी प्रेमचंद के ईर्द-गिर्द ही घूमती हैं जबकि उसकी बिल्कुल जरूरत नहीं है। प्रेमचंद ने यथार्थ पर जिस तरह का काम किया है, उसके बाद अब यथार्थ के परे देखना भी जरूरी हो गया है कि कहीं हम अपने जीवन के आभासिय यथार्थों में तो नहीं जी रहे हैं। जिसे हम यथार्थ समझ रहे हैं वह सही में यर्थाथ है या नहीं।
कथा साहित्य में कल्पना और यथार्थ की भूमिका कितनी होती है ?
कथा साहित्य में कल्पना तो होती है, लेकिन उसकी जमीन में यथार्थ होता है। मनुष्य जो कल्पना करता है वह अपनी देखी और सुनी चीजों के आसपास ही करता है। इसलिए किसी कथा में जो कल्पना है वह यथार्थ के आसपास ही घटित हुई होती है। मेरा मानना है कि इसमें कल्पना ज्यादा होती है, लेकिन वह कल्पना जीवन के यथार्थ से ही जुड़ी होती है।
वर्तमान में आप क्या लिख रहे हैं ?
अभी मे कुछ कहानियां लिख रहा हूं। इनमें से कुछ कहानियां पत्रिकाओं में छपी हैं। इसके अलावा उपन्यास लिखने का मन भी बना रहा हूं।
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